66A अब भी ज़िंदा? पुलिस और शिकायतकर्ता दोनों जाएँगे जेल!

66A अब भी ज़िंदा? पुलिस और शिकायतकर्ता दोनों जाएँगे जेल!

66A आय टी एक्ट अब भी ज़िंदा? पुलिस और शिकायतकर्ता दोनों जाएँगे जेल!

 सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में ही इसे मार डाला था, फिर भी पुलिस आज भी इसका इस्तेमाल कर रही है !

24 मार्च 2015 – भारत के संवैधानिक इतिहास का एक स्वर्णिम दिन।  

सुप्रीम कोर्ट की बेंच (जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस आर.एफ. नरीमन) ने श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया और आईटी एक्ट की धारा 66A को पूरी तरह असंवैधानिक और रद्द घोषित कर दिया।

कोर्ट ने साफ़ शब्दों में कहा था –  
“66A धारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) का गला घोंटती है, यह अस्पष्ट है, यह मनमानी को बढ़ावा देती है, इसे तत्काल प्रभाव से ख़त्म किया जाता है।”

फिर भी, दस साल बाद भी यह धारा ज़िंदा भूत की तरह घूम रही है।  2025 तक भी लोग इसके तहत गिरफ्तार हो रहे हैं, जेल जा रहे हैं, महीनों अदालत के चक्कर काट रहे हैं।

 आँकड़े जो शर्मसार करते हैं
- 2015 से 2022 तक कम-से-कम 1,300 से ज़्यादा केस** धारा 66A के तहत दर्ज हुए (सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे के अनुसार)।
- 2021-22 में भी दर्जनों नए केस दर्ज हुए।
- महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल – हर राज्य में यह “मृत कानून” जिंदा है।
- अधिकांश शिकायतकर्ता राजनीतिक कार्यकर्ता, स्थानीय गुंडे या नाराज़ रिश्तेदार होते हैं।

 असली दोषी कौन?
1. शिकायतकर्ता (कंप्लेनन्ट) 
   जो जानबूझकर झूठी/बंद धारा का इस्तेमाल कर प्रतिद्वंद्वी को फँसाना चाहते हैं।  
   उदाहरण:  
   - “फेसबुक पर मेरी इज़्ज़त उतार दी”  
   - “मुझे व्हाट्सएप पर गाली दी”  
   - “मोदी/राहुल/ममता/केजरीवाल के खिलाफ पोस्ट डाली”  
   ये शिकायतें पुलिस को पता है कि धारा मरी हुई है, फिर भी FIR लिखी जाती है।

2. पुलिस (ख़ासकर साइबर सेल और थाना स्तर)  
   - अधिकांश पुलिसकर्मी आज भी नहीं जानते कि धारा 66A रद्द हो चुकी है।  
   - कई पुलिसवाले जानते भी हैं, फिर भी लिखते हैं – क्योंकि “FIR तो कट जाएगी, बाद में कोर्ट देख लेगी”।  
   - कुछ पुलिसवाले शिकायतकर्ता से “सुलह” करवाकर पैसे कमाते हैं।  
   - साइबर सेल के कई अफसर आज भी धारा 66A को “हल्का-फुल्का सेक्शन” मानकर चलाते हैं।

3. कानून की किताबें और पुलिस मैनुअल  
   - भारत कोड, मणि राम सेठी, कमल प्रकाशन, पुलिस ट्रेनिंग मैनुअल – सभी जगह आज भी धारा 66A छपी हुई है।  
   - कहीं फुटनोट में छोटे अक्षरों में लिखा होता है “Struck down vide Shreya Singhal judgment” – पुलिस उसे पढ़ती ही नहीं।

       2022 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर चेतावनी दी थी
12 अक्टूबर 2022 को जस्टिस आर.एफ. नरीमन (रिटायर्ड) की बेंच ने PUCL की याचिका पर सख़्त आदेश दिया था:

- सभी लंबित धारा 66A के केस तत्काल बंद किए जाएँ।  
- कोई नया केस न दर्ज हो।  
- सभी राज्यों के डीजीपी को श्रेया सिंघल जजमेंट की कॉपी भेजी जाए।  
- सभी पुलिस थानों को सर्कुलर जारी हो।  
फिर भी 2023, 2024 और 2025 में भी नए केस दर्ज हुए।

 अब क्या करें – नागरिकों के लिए प्रैक्टिकल गाइड
      अगर आपके खिलाफ धारा 66A की FIR हुई है तो ये करें:

1. तुरंत हाईकोर्ट में 482 CrPC की पिटिशन दाखिल करें – FIR रद्द हो जाएगी (100% चांस)।  

2. साथ में सुप्रीम कोर्ट का श्रेया सिंघल जजमेंट और 2022 का PUCL ऑर्डर लगाएँ।  

3. थाने में ही IO को जजमेंट की कॉपी देकर लिखित में आपत्ति दर्ज करें।  

4. शिकायतकर्ता और पुलिसवाले के खिलाफ 211 IPC (झूठी शिकायत), 166A, IPC (गैर-कानूनी आदेश देना), 167 IPC (क्षती पहुंचने के लिए असत्य दस्तावेज तैयार करना) और 340 CrPC (झूठी साक्ष्य देने के लिए) की शिकायत करें।  

5. RTI डालकर पूछें – “क्या आपको पता है कि धारा 66A रद्द हो चुकी है?” – जवाब हैरान कर देगा।

 अंत में अपील;---
पुलिस भाइयों से:  अगर आप आज भी धारा 66A लिख रहे हैं तो याद रखिए –  
- आप संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं।  
- आप नागरिक के मौलिक अधिकार छीन रहे हैं।  
- एक दिन कोई हाईकोर्ट आपको और शिकायतकर्ता को कोर्ट की अवमानना के लिए जेल भेज देगा।

शिकायतकर्ताओं से:   झूठी धारा 66A से किसी को फँसाने की कोशिश मत कीजिए।  
कोर्ट अब सख़्ती से पेनाल्टी लगा रहा है – 50 हज़ार से 5 लाख तक का जुर्माना और जेल भी हो सकती है।

धारा 66A मर चुकी है।  
इसे दफनाने का वक़्त आ गया है।  
इसे ज़िंदा रखने वाले हर शिकायतकर्ता और हर पुलिसवाले को अब कोर्ट सजा देगा।

जय हिंद। जय संविधान।  
(और जय इंटरनेट – बिना धारा 66A के!)

- डॉ. रियाज़ देशमुख, सहायक पोलीस आयुक्त (नि), संभाजीनगर (औरंगाबाद)