नकली सफ़ीरों और फर्जी चंदे का बढ़ता खतरा: समाधान और जागरूकता की ज़रूरत

डिजिटल युग की आधुनिकता ने आज हर चीज़ को प्रचुर मात्रा में और सरल बना दिया है। लेकिन, इन्हीं सुविधाओं का दुरुपयोग दिनी और अरबी मदरसों के लिए चंदा जमा करने के नाम पर कुछ नकली सफ़ीर (प्रवासी) कर रहे हैं। ये लोग झूठे प्रमाणपत्र तैयार करके, भावनाओं का सहारा लेकर लोगों को ठगते हैं। विशेष रूप से रमज़ान के महीने में इस प्रकार की धोखाधड़ी में तेजी आती है, जिससे ज़रूरतमंद और असली मदरसों को नुकसान होता है।
आज नकली सफ़ीर इतने कुशल हो गए हैं कि वे झूठे दस्तावेज़ों और कहानियों के ज़रिए लोगों को गुमराह करते हैं। ये सफ़ीर लगातार रोरो कर और भावनात्मक कहानियों के सहारे चंदा मांगते हैं। कभी कहते हैं कि मदरसे में खाना नहीं है, कभी कहते हैं कि छात्र भूखे हैं, तो कभी कुरान वितरण के लिए पैसे मांगते हैं। इन नकली सफ़ीरों की वजह से असली और ज़रूरतमंद मदरसों को भी संदेह की नज़र से देखा जाता है।
जो मदरसे सच्चे अर्थों में छात्रों की शिक्षा और संस्कारों के लिए मेहनत कर रहे हैं, उनके सफ़ीर अत्यंत सरलता और ईमानदारी से मदद की गुहार लगाते हैं। वे झूठ का सहारा नहीं लेते और न ही धोखा देते हैं। लेकिन, नकली सफ़ीरों की वजह से लोग उनके साथ भी बुरा बर्ताव करते हैं।
हमें सफ़ीरों पर नियंत्रण के लिए कुछ उपाय योजना करने की जरूरत है जैसे;
•मस्जिद और स्थानीय ज़िम्मेदार व्यक्तियों की भूमिका : मस्जिदों के इमाम, खतीब और ज़िम्मेदार व्यक्तियों को केवल जाने-माने, प्रतिष्ठित और काम करने वाले मदरसों को ही दान देने की सिफारिश करनी चाहिए। अनजान और नकली सफ़ीरों को सम्मानपूर्वक लेकिन दृढ़ता से मना कर देना चाहिए।
•डिजिटल युग का लाभ उठाएँ: मदरसे अपनी आधिकारिक डिजिटल पहचान बनाएं, जैसे यूट्यूब चैनल या वेबसाइट।
• मदरसे की लोकेशन, बोर्ड और अन्य जानकारी को सार्वजनिक करें।
• किसी सफ़ीर पर संदेह होने पर वीडियो कॉल के माध्यम से मदरसे की पुष्टि करें।
• जन जागरूकता अभियान : आम लोगों को नकली सफ़ीरों की पहचान करना सिखाएं। असली मदरसों की ज़रूरतों और उनके कार्यों का प्रचार-प्रसार करें।
• कानूनी नियम बनाना : सरकार या स्थानीय मुस्लिम संगठनों को नकली चंदा लेने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाने चाहिए। मदरसों के सफ़ीरों को आधिकारिक मान्यता देने के लिए एक मानक प्रक्रिया लागू करनी चाहिए।
नकली सफ़ीरों के दुष्परिणाम जो हमें देखने को मिलते हैं वह इस प्रकार हैं;
• असली ज़रूरतमंद मदरसों को उचित दान नहीं मिल पाता।
• लोगों का मदरसों पर से विश्वास उठने लगता है।
• मुस्लिम समाज को अन्य समुदायों के तानों का सामना करना पड़ता है। धोखाधड़ी करने वालों का धंधा बढ़ता है और समाज में अशांति फैलती है।
इस समस्या का समाधान निकालने के लिए ज्हमें पहल करने की जरूरत है इसके लिए हम; हर मस्जिद और मदरसे के ज़िम्मेदार व्यक्ति, स्थानीय संस्थाएँ और मुस्लिम समाज के लोग इस समस्या को गंभीरता से लें। लोगों को यह सिखाया जाए कि नकली सफ़ीरों की पहचान कैसे करें और दान देने से पहले किन बातों की पुष्टि करें। अगर हम इस समस्या की ओर ध्यान नहीं देंगे, तो आने वाले समय में समाज पर इसके गंभीर परिणाम दिखाई देंगे। इसलिए समय रहते सही निर्णय लेना और ठोस कदम उठाना ज़रूरी है। असली ज़रूरतमंद मदरसों को सहयोग दें और नकली सफ़ीरों को सम्मानपूर्वक लेकिन दृढ़ता से मना करें।
"समाज को गुमराह करने वाले इस धोखे पर विजय पाने के लिए सभी स्तरों पर एकजुट होकर काम करना समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है।"